फ़लसफ़े से बेलों की तरह लिपटी यादें,
सपनो में भी काफ़िर मुंतसिर न हो सका
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यादें कहां कहां ले जाती हैं,
सफ़र लाश की तरह क्यों गुज़ारें,
कफ़न एक बार ही ओड़ना मुसाफ़िर,
सर्दी के बाद, हल्की सी हरियाली हर मोड़ पर रोक देती है