हम कुम्हार अपनी माटी के
नित नित संवारे अपने को
माटी जैसे नरम बने हम
दंभ द्वेष से दूर रहे हम ।
माटी में रच बसकर
हम माटी बन जायें
माटी में ही बाग लगाया
माटी से ही घर को बनाया।
माटी का सब मोल समझो
अंत में माटी में ही मिल जाना है।
तारीख: 14.02.2024अनीता कुलकर्णी
नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है