संवाद
अब थम गये
चादर छूट गयी
इमारत में
जहां हम साथ होते थे
कभी
जब
संग टहलते थे
उन टूटी सड़कों पर
घने दरख़्तों तले
फूल की बेल
जब
लगती थी टूटी फूटी
आयतें सी
उस चांदनी में
जो चमकती थी
साथ बढ़ती सी
लगती थी
उन रातों में
जब हम तुम
हंसते थे
चहकते थे
ठिठुरकर
सिमट उठते थे