चोखेर बाली


नमस्ते, मैं एक साहित्य और रंगमंच प्रेमी हूँ। जब मैंने पहली बार रवींद्रनाथ ठाकुर की चोखेर बाली पढ़ी, तो मुझे लगा कि यह केवल एक प्रेम त्रिकोण पर आधारित उपन्यास होगा, लेकिन जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ी, इसका गहरा सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पक्ष खुलता गया। यह कृति सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि बंगाल की शुरुआती 20वीं सदी के समाज की परतें उधेड़ती है। यहाँ स्त्रियों की स्थिति, विधवा जीवन की यातना, पुरुषों के अहं और सामाजिक नियमों की कठोरता सब कुछ समाहित है।

 

कहानी का सार


चोखेर बाली का शीर्षक ‘आँख की किरकिरी’ है। कहानी की नायिका बिनोदिनी एक युवा, शिक्षित विधवा है। शुरुआत में महेंद्र की माँ राजलक्ष्मी उसे अपने बेटे के लिए बहू चुनना चाहती थीं, मगर महेंद्र ने आशालता से प्रेम विवाह कर लिया। बाद में राजलक्ष्मी बिनोदिनी को घर में आशालता की सहेली के रूप में लाती हैं। बिनोदिनी, आशालता और महेंद्र के बीच त्रिकोणीय संबंध और ईर्ष्या का सिलसिला शुरू होता है। बिनोदिनी की बुद्धिमता, उसकी विद्रोहशीलता और समाज से प्रश्न करने की क्षमता कहानी को अलग ऊंचाई देती है।


कथानक में महेंद्र की कमज़ोरियाँ, आशालता की मासूमियत और बिहारी की निष्ठा जैसे गुण स्पष्ट होते हैं। बिनोदिनी महेंद्र से आकर्षित हो जाती है, पर उसे अपनी ‘दूसरी’ स्थिति का अहसास है। वह महेंद्र की आंखों का किरकिरी इसलिए बनती है क्योंकि वह न केवल उसे मोहती है बल्कि उसके दांपत्य में भी दरार डालती है। कहानी के अंत में बिनोदिनी सब कुछ छोड़कर तीर्थ यात्रा पर निकल जाती है; बिहारी उसे विवाह प्रस्ताव देता है, मगर वह आज़ाद जीवन चुनती है।

 

प्रमुख विषय एवं प्रतीक


1.  विधवा जीवन की विडंबना: बिनोदिनी का पात्र उस समय की हिंदू समाज में विधवाओं की दयनीय स्थिति को दर्शाता है। उसकी शिक्षा और सुंदरता के बावजूद उसे समाज में जगह नहीं मिलती।
1.  स्त्री इच्छा और स्वतंत्रता: उपन्यास में स्त्री विस्मय और उनके अपने निर्णय लेने की इच्छा सामने आती है। बिनोदिनी अपने दिल की बात कहने से नहीं हिचकती और अपने जीवन पर अधिकार चाहती है।
2.  ईर्ष्या और दोस्ती: आशालता और बिनोदिनी की दोस्ती धीरे धीरे ईर्ष्या में बदलती है। यह दर्शाता है कि स्त्रियाँ समाज द्वारा बनाए गए सीमित स्थान में कैसे एक दूसरे की प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं।
3.  पुरुष अहंकार: महेंद्र आत्मकेंद्रित है; वह अपने मित्र बिहारी और पत्नी आशालता की भावनाओं को समझ नहीं पाता।
4.  समाज की रूढ़ियाँ: विधवाओं पर पुनर्विवाह की मनाही, महिलाओं को शिक्षा से दूर रखना—ये सब रूढ़ियाँ उपन्यास में चुनौती के रूप में सामने आती हैं।

 

कुछ दिलचस्प तथ्य


•  यह उपन्यास पहली बार 1903–04 में बांग्लादेशी पत्रिका में धारावाहिक के रूप में छपा।
•  इसे फिल्म, टेलीविजन और नाटक के रूप में कई बार रूपांतरित किया गया है; रितुपर्णो घोष की 2003 की फिल्म प्रसिद्ध है।
•  ठाकुर ने इस कहानी में नारी मन के अंदर उतरकर उनके बहुआयामी स्वभाव का चित्रण किया है, जो उस दौर के लिए क्रांतिकारी था।

 

समीक्षा और अनुभव


यह उपन्यास पढ़ते हुए मैं बार बार रुककर सोचती थी कि किसी स्त्री का इतना साहसी और ईमानदार चित्रण 100 साल पहले कैसे संभव हुआ। बिनोदिनी एक ऐसी विधवा है जो समाज के नियमों को चुनौती देती है, अपनी कामनाओं को दबाती नहीं, बल्कि स्वीकारती है। उसकी स्थिति आँख में फंसे कण की तरह है—वह न मिटती है, न सहन होती है। महेंद्र और बिहारी दो मित्र हैं; दोनों के गुण और दोष अलग हैं। महेंद्र स्वार्थी और अनिश्चित है; वह बिनोदिनी की ओर आकर्षित तो होता है, पर उसे सम्मान नहीं दे पाता। बिहारी ज़िम्मेदार और सच्चा है, लेकिन वह दोस्ती की सीमाओं से बंधा है।


ठाकुर की भाषा लयात्मक और बिंबों से भरी है। बंगाल के घरों, आंगनों, पुरानी हवेलियों और नदी किनारों के दृश्य जीवंत हो उठते हैं। स्त्रियों की दुनिया—पाकघर, पूजा, साड़ी, गहने—बहुत विश्वसनीय लगता है। लेखक ने प्रेम, ईर्ष्या, अपराधबोध और आत्ममंथन जैसे भावों का मार्मिक चित्रण किया है।
क्यों पढ़ें?


•  अगर आप आधुनिक भारतीय साहित्य की शुरुआत में स्त्री पात्रों की जटिलता को देखना चाहते हैं, तो यह उपन्यास आवश्यक है।
•  यह दिखाता है कि कैसे सामाजिक पाबंदियों के बीच भी महिलाएँ अपनी पहचान तलाश सकती हैं।
•  इसके पात्र आज भी हमारे आसपास दिखते हैं—विवाह, प्रेम, ईर्ष्या और दोस्ती की उलझनें आज भी वैसी ही हैं।

 

मेरी राय


चोखेर बाली को पढ़ना मेरे लिए भावनात्मक यात्रा था। बिनोदिनी की विद्रोही आत्मा कहीं न कहीं मुझे अपनी पीढ़ी की स्त्रियों से जोड़ती है। आशालता का सरलता भरा प्रेम और विश्वास प्रेरक है, जबकि महेंद्र जैसा पात्र सिखाता है कि अपने फैसलों की जिम्मेदारी लेना कितना ज़रूरी है। उपन्यास का अंत हालांकि दुखद और अधूरा लगता है, लेकिन शायद यही इसकी खूबसूरती है: जीवन में सब कुछ सुलझता नहीं, कुछ किरकिरा रह जाता है।


तारीख: 15.08.2025                                    लिपिका




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