निर्मला

किरदारों के आईने में एक टूटते हुए घर की कहानी

 

कोलकाता में आज सुबह की धूप थोड़ी नर्म है। अपनी बालकनी में बैठकर चाय पीते हुए मेरी नज़र सड़क के पार एक घर पर पड़ी, जहाँ शायद किसी शादी की तैयारी चल रही थी। शहनाई की धीमी, मंगल ध्वनि हवा में तैर रही थी। इस दृश्य में एक उम्मीद है, एक नए जीवन की शुरुआत का उल्लास है। लेकिन मेरा मन अनायास ही मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास 'निर्मला' की ओर चला गया, एक ऐसी कहानी जो हमें याद दिलाती है कि कैसे हर घर एक मंगल-गीत से शुरू होकर एक ख़ामोश सिसकी में भी बदल सकता है। 'निर्मला' सिर्फ़ दहेज़ या अनमेल विवाह की कहानी नहीं, यह किरदारों के मनोविज्ञान और उनके आपसी टकराव से उपजी एक घरेलू त्रासदी का जीवंत दस्तावेज़ है।


इस उपन्यास की पूरी इमारत उसके किरदारों के मज़बूत कंधों पर टिकी है। हर किरदार कहानी को आगे बढ़ाने के लिए एक ज़रूरी कड़ी है।


सबसे पहले बात करते हैं कहानी की धुरी, निर्मला की। पंद्रह साल की एक लड़की, जिसके नाम का अर्थ है 'निष्कलंक', पर विडंबना देखिए कि उसका पूरा जीवन संदेह और आरोपों के दाग़ सहते हुए बीतता है। निर्मला कहानी की मुख्य पात्र है, लेकिन वह कहानी को चलाती नहीं, कहानी उसे चलाती है। वह उस समाज की स्त्री का प्रतीक है जिसकी अपनी कोई एजेंसी नहीं है। उसका विवाह, उसका मातृत्व, उसकी ख़ुशियाँ और उसके आँसू, सब कुछ दूसरों के फ़ैसलों और व्यवहार पर निर्भर है। प्रेमचंद ने उसके माध्यम से एक युवा लड़की के पत्नी और फिर सौतेली माँ बनने के मनोवैज्ञानिक संघर्ष को इतनी गहराई से दिखाया है कि आप उसकी घुटन को महसूस कर सकते हैं। वह एक उम्मीद भरी कली के रूप में उपन्यास में प्रवेश करती है और अंत तक एक मुरझाया हुआ फूल बनकर रह जाती है। उसकी यात्रा ही इस उपन्यास का मुख्य कथानक है।


कहानी की इस त्रासदी को गति देने वाला सबसे महत्वपूर्ण किरदार है निर्मला का पति, मुंशी तोताराम। तोताराम कोई क्रूर, एकआयामी खलनायक नहीं है, और यही प्रेमचंद की सबसे बड़ी जीत है। वह एक असुरक्षित, अधेड़ उम्र का विधुर है जो अपनी युवा पत्नी को ख़ुश करने की हर कोशिश करता है। वह उसके लिए गहने लाता है, उसकी तारीफ़ करता है, पर उसके मन में अपनी उम्र और सूरत को लेकर एक गहरी हीन भावना है। यही हीन भावना उसके चरित्र की सबसे बड़ी ख़ामी बन जाती है और प्रेम की जगह संदेह को जन्म देती है। उसका शक कहानी का वह केंद्रीय तत्व है जो पूरे परिवार को तबाह कर देता है। वह उस पितृसत्तात्मक समाज का प्रतीक है जो अपनी असुरक्षाओं का बोझ औरत पर डाल देता है। तोताराम के बिना, यह कहानी सिर्फ़ एक दुखद विवाह की होती; उसके संदेह के कारण यह एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर बन जाती है।

 


तोताराम का यही शक सबसे पहले उनके अपने ही बेटे, मंसाराम, की ज़िंदगी को निगल जाता है। मंसाराम, जो निर्मला और उसके नए परिवार के बीच एक पुल बन सकता था, अपने ही पिता के संदेह का पहला शिकार बनता है। वह एक होनहार, संवेदनशील और निर्दोष लड़का है जो अपनी नई माँ, निर्मला, को सच्चा सम्मान और स्नेह देता है। लेकिन जब उसका पिता उसी स्नेह पर सवाल उठाता है, तो वह अंदर से टूट जाता है। उसका चरित्र कहानी का सबसे मार्मिक बिंदु है। मंसाराम की मृत्यु सिर्फ़ एक घटना नहीं, बल्कि उस घर की आत्मा की मृत्यु है। उसकी मौत के बाद ही निर्मला पूरी तरह अकेली पड़ जाती है और घर का माहौल हमेशा के लिए विषाक्त हो जाता है। वह उस निर्दोष पीढ़ी का प्रतीक है जो बड़ों की ग़लतियों और असुरक्षाओं की क़ीमत चुकाती है।


अन्य पात्र, जैसे दूसरे सौतेले बेटे जियाराम और सियाराम, भी कहानी को आगे बढ़ाते हैं। मंसाराम की मौत के बाद घर में जो नफ़रत और अविश्वास का माहौल बनता है, उसी के कारण जियाराम चोरी के रास्ते पर चल पड़ता है और सियाराम घर छोड़कर भाग जाता है। ये पात्र दिखाते हैं कि कैसे एक व्यक्ति का संदेह सिर्फ़ एक रिश्ते को नहीं, बल्कि एक पूरे परिवार की नींव को हिलाकर रख देता है।


इस तरह, प्रेमचंद किरदारों का एक ऐसा जाल बुनते हैं जहाँ हर कोई अपनी-अपनी जगह पर एक कारण भी है और एक परिणाम भी। 'निर्मला' की कहानी हमें बताती है कि बड़ी-बड़ी त्रासदियाँ हमेशा बड़े खलनायकों से नहीं जन्मतीं; वे अक्सर हमारे अपने घरों में, हमारे अपने मन के छोटे-छोटे शक और असुरक्षाओं से जन्म लेती हैं।


तारीख: 04.08.2025                                    लिपिका




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