मुहब्बत का फैसला

 

दुआ दें या मुझको वो इसकी सजा दें !
मुहब्बत का पर फैसला तो सुना दें !!

यही हाल अपना रहेगा कहाँ तक ;
मेरे पास आकर वो इतना बता दें !!

दिवाना या पागल कि आशिक जो भी हो ;
मुझे जैसा चाहे वो वैसा बना दें !!

कहूँ शेर औ सामने वो आ जायें;
कि उसदिन तो पूरी ग़ज़ल हम सुना दें !!

कि फिर दर्द दोनों का कुछ कम हो जाये ;
मैं उनको रूला दूँ वो मुझको रूला  दें !!

चले जायें वो छोड़कर दूर लेकिन ;
बिना उनके जीने का फिर हौंसला दें !!

अगर उनसे कुछ भी नहीं होता तो फिर ;
आ के मुझको वो पहले जैसा बना दें !!

इसी रस्म में है मजा पीने का गर ;
मैं उनको पिला दूँ वो मुझको पिला दें !!

मैं दो लफ्ज से ज्यादा कुछ भी नहीं हूँ ;
है उनकी ये मर्जी वो चाहे मिटा दें !!

यही माँगता रहता है उनसे ये 'देव'
कभी आके मुझको वो मुझसे मिला दें !!


तारीख: 15.06.2017                                     देव मणि मिश्र









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