बैठे हैं
दिन की शाखों पर
धूप के परिंदे!
आतप स्नान
अब करती
मही है!
बढ़ती जाती
कर्ज की
बही है!!
आभास हुआ
तारे-
आसमान के बाशिंदे!
फुनगियों
पर लिखा
किरणों ने पत्र!
पावस की
वर्षा
होगी सर्वत्र!!
बाज-
यकीनन में हैं
मानो खूंखार दरिंदे!
घुंघरू हैं
बूंदों के
पाँव में!
अमृत है मेह
खेतों में
गाँव में!!
दल लगते हैं
पंछी के
सरकारी कारिंदे!