जंगल

क्या जंगल में
घटित हुआ कि
आमों से कलरव
गायब है!

जीव जीव
भक्षण की ही
प्रथा बनी है!
जीना कमजोरों
का भी
व्यथा बनी है!!

होगा जितना
जो खूंख्वार-
जंगल का वह ही
सायब है!

पुरवा पछुआ
बहते-बहते
सहम गईं!
जंगल से 
मुंह मोड़ें
सुबहें नई नई!!

जैसे मुझको
लगती अक्सर
दुनियादारी
अजायब है!


तारीख: 03.03.2024                                    अविनाश ब्यौहार




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