क्या जंगल में
घटित हुआ कि
आमों से कलरव
गायब है!
जीव जीव
भक्षण की ही
प्रथा बनी है!
जीना कमजोरों
का भी
व्यथा बनी है!!
होगा जितना
जो खूंख्वार-
जंगल का वह ही
सायब है!
पुरवा पछुआ
बहते-बहते
सहम गईं!
जंगल से
मुंह मोड़ें
सुबहें नई नई!!
जैसे मुझको
लगती अक्सर
दुनियादारी
अजायब है!