पिंजरे में कैद तोता अपनी किस्मत पर रो रहा था,
खुले आसमान का सपना देख कर मलिक को कोस रहा था।
मालिक की दी मिर्ची उसे तीखी लग रही थी,
प्यार भरी पुचकार एकदम फीकी लग रही थी।।
सोच रहा था पिंजरा कब भूल से खुल जाए,
मौका पाकर वो झट से उड़ जाए।
बीत गए दिन और साल आ गया,
पास वाली दुकान में पिंजरे का जाल आ गया।।
जाल नहीं था खाली, मुर्गियों से भरा था
उनका हाल तो कितना ही बुरा था।
खुलता था पिंजरा वह बाहर आती थीं,
फिर कभी नहीं पिंजरे में जा पाती थीं।
यह देखकर उसका (तोते का) विचार ही बदल गया,
मालिक से मिली मिर्ची का स्वाद ही बदल गया।।
सोचने लगा यह कैसा उलट फेर है,
दोनों के नसीब में पिंजरे की जेल है।
फिर क्यों मुझे प्यार से भोजन दिया जाता है,
और उन्हें प्यार से भोजन में परोसा जाता है।।