तुम्हारा बसेरा

बहती हो नदिया सी सांसों में तुम
आती हो निंदिया सी रातों में तुम
जीवन के हर हालातों में तुम
रब से इस दिल की मुलाकातों में तुम।

पानी की हल्की सी हलचल में तुम
जीवन के मेरे पल पल में तुम
मां के उस पावन आंचल में तुम
मरते को जिला दे जो उस दिल में तुम।

बगिया की पहली हरियाली में तुम
ख्वाबों के नशे की प्याली में तुम
किसलय की कोमल सी लाली में तुम
प्यार से जो दे कोई उस गाली में तुम।

पुष्पों की प्यारी सी क्यारी में तुम
सपनों की रातों की अंधियारी में तुम
बचपन की अंजानी यारी में तुम
मर मिटे जो देश पर उस नारी में तुम।

पतझड़ में जो खिले उस उपवन में तुम
खुदा से जो मिले उस जीवन में तुम
महका दे हवा को उस चंदन में तुम
जाने जो हर दर्द को उस मन में तुम।

पंछी की पहली उड़ान में तुम
कान्हा की मुरली की तान में तुम
दर्द को छुपाए उस मुस्कान में तुम
तन्हाई में लिखे मेरे हर गान में तुम।


तारीख: 12.08.2017                                    प्रतीक









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