ऐसी है वो

फूलों सी नाजुक, तितली सी चंचल, प्रकृति सी सुन्दर है वो।
शब्दों की धनी, आशाओं की बनी, विचारों का समंदर है वो।

जब हँसती है ऋतुराज सी बहारें होती हैं।
जैसे मोती की सीपें समंदर किनारे होती हैं।
बादलों सी मचलती है, जब वो चलती है।
बातें करती है जैसे वादों की दीवारें होती हैं।
पाजेब के झंकार सी, कुमुद के विस्तार सी, इश्क के खुमार सी है वो।
नयनों के पलक सी, दिव्य ज्योति के झलक सी, ज़मीन पे फलक सी है वो।

जब उससे बातें करता हूँ, थोडा घबरा जाती है।
मेरी बातों पे हँसती है, साथ ही शरमा जाती है।
खुद में ही खोई रहती है, जैसे कि कोई ग़ज़ल हो।
आईने को सामने पाती है, खुद पर इतरा जाती है।
हजारों में अकेली सी, फूलों की सहेली सी, एक प्यारी सी पहेली सी है वो।
जिस्म में जान सी, खुद से अनजान सी, अब मेरी पहचान सी है वो।


तारीख: 01.07.2017                                    विवेक सोनी









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