धारा 370

एक स्याह रात ने धुआँ खाँसा था
जंगल, झील और कोहसार
के कोहनी-घुटने छिल गए थे
खौफ़नाक भगदड़ सी मची थी
कईयों ने ख़ून की क़ै करी थी

इसी वक़्त के वक्फे में
जाने कब मेरा हाथ छूट गया 
बिछड़ गया था तन्हा सा
अपनो से कितनी दूर गया 

सालों बाद बदन में जुम्बिश पाई
जब अम्मा की आवाज़ है आई
मेरे "कश्मीर", तू कहाँ था बच्चे 
बिन तेरे थी गोद पराई ।


तारीख: 19.09.2019                                    प्रशान्त बेबाऱ









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